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लीमा में 'शर्मिंदगी की दीवार'

लीमा में शर्मिंदगी की दीवार

पेरू की राजधानी लीमा के दक्षिण में एक पहाड़ी को बाकी शहर से अलग करने वाली 10 किलोमीटर लम्बी तथा 3 मीटर ऊंची दीवार अमीरों और गरीबों के इलाके को अलग करने की प्रतिक बन चुकी है। इसके एक ओर रहने वाले झुग्गी वासी इसे ‘वॉल ऑफ शेम‘ यानी ‘शर्मिंदगी की दीवार‘ कहते हैं। झुग्गी बस्ती में छोटी-सी खाने-पीने की दुकान चलाने वाली 51 वर्षीय ऑफेलिया मोरेनो बताती हैं, ”यह वॉल ऑफ शेम है क्योंकि दूसरी ओर रहने वाले आमिर लोगों को हम गरीबों पर शर्म आती है। वे हमें खुद से अलग समझते हैं और इसलिये हमें एक तरफ छुपा कर रखना चाहते हैं।” पहाड़ी की छोटी से दीवार के दोनों ओर फर्क साफ नजर आता आता है। एक ओर विशाल इमारतें सफेदरंगी हैं। उनके साथ स्विमिंग पुल भी हैं और टैनिस कोर्ट से लेकर दर्जनों पार्क भी इलाके को पैम्पलोना कहते हैं जहां का नजरा झुग्गी-बस्ती, कूड़े के ढेरों तथा आवारा पशुओं से भरा है।

1980 के दशक में शुरू हुई दीवार

वॉल ऑफ शेम‘ का निर्माण 1980 के दशक में शुरू हुआ था जब प्रबुद्ध समाज से संबंध रखने वाले कासुएरिनाज लोगों के इलाके में स्थित एक निजी स्कूल ने फैसला किया कि छात्रों तथा शिक्षकों को तब पेरू में छिड़े गुरिल्ला युद्ध से बचाने के लिए पहाड़ी की एक दीवार बना दी जाए। वक्त के साथ यह दीवार आगे बढती गई। अपने घरों को पहाड़ी पर बस रहे लोगों से सुरक्षा की आवश्यकता का हवाला देकर प्रशासन से दीवार को बढ़ाने की इजाजत न्गेवासियों को मिलती रही। उनका आरोप था कि पहाड़ी पर बस रहे लोग जमीनों पर कब्जे कर रहे हैं।

ये वे लोग थे जो एंडीज पर्वत पर रहने वाले मूल निवासी थे जिन्हें लगता था कि शहर में उन्हें एक सुनहरा भविष्य मिल जाएगा परंतु यहां आने के बाद उन्हें न तो रहने के लिए कहीं जगह मिली और न हीं पक्का रोजगार। मजबूरी में वे पहाड़ी पर वीरान जमीनों पर लकड़ी या प्लास्टिक से झुग्गियां बना कर रहने लगे।

वर्ष 2014 में दीवार के पूरे होने तक पहाड़ी पर झुग्गी बस्ती में करीब 300 परिवार बस चुके थे। हालांकि, इन लोगों का दावा है कि उन्होंने आकर इस पहाड़ी की हालत सुधारी है। उनके अनुसार यहां पहले महिलओं से बलात्कार होते थे और अपराधी शरण लेते थे और नशा करते थे आज यह स्थान एक रिहायशी इलाका बन चुका है और पहले से कहीं अच्छी हालत में है। यहां रहने वालों का कहना है कि उन्होंने कभी कोई बुरा काम नहीं किया और उन्हें तो बस सिर छुपाने के लिय एक आसरे की जरूरत थी जो उन्हें यहां मिल गया। अब वे दीवार को देखते हैं तो उन्हें यह समझ नहीं आता है कि यह दीवार दुसरी ओर रहने वालों की सुरक्षा की प्रतिक है या उनके साथ भेदभाव की।

कठिन जीवन

पैम्पलोना में जीवन काफी कठिन है। वहां जल आपूर्ति जैसी मूलभूत सुविधा तक नहीं है। हर परिवार को प्रतिदिन टैंकरो से लगभग 500 रूपए खर्च करके 500 लिटर पानी खरिदना पड़ता है। इन टैंकरों से भी साफ पानी मिलने की कोई गारंटी नहीं है। पानी की कमी के अलावा पैम्पलोना बीमारीओं का भी गढ़ है क्योंकि वहां सीवेज सिस्टम भी नहीं है। यहां रहने वालों में दीवार को लेकर इसलिए गुस्सा है क्योंकि इस्जी वजह से रोज काम के लिए शहर में जाने के लिए उन्हें बहुत लम्बी दूरी तय करनी पड़ती है। लोगों को 1घंटा लगता था वहीं अब उन्हें 3 घंटे तक लग जाते हैं। बच्चों का कहना है कि उन्हें समुद्र तथा शहर की रोशनियों को न देख पाने पर दुःख होता है। कभी-कभी वे दीवार पर सीढ़ी लगा कर दूसरी ओर झांक लेते हैं और तब उनके मन में यही सवाल उठता है, ”आखिर हम उस तरफ क्यों नहीं रह सकते“?

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